बुधवार, 8 अगस्त 2012

22 वाँ आचार्य आनंद ऋषि साहित्य पुरस्कार डॉ. सुनील देवधर को प्रदत्त

22 वाँ 'आचार्य आनंद ऋषि साहित्य पुरस्कार' ग्रहण करते हुए डॉ. सुनील देवधर. साथ में मुख्य अतिथि प्रो. एन. गोपि, समारोह अध्यक्ष
प्रो. ऋषभ देव शर्मा,  तेजराज जैन,  बालचंद बल्लावत, ओमप्रकाश जैन, उगम चंद सुराणा एवं अन्य.



हैदराबाद, 5 अगस्त 2012 .

राष्ट्रसंत आचार्य आनंदऋषि की स्मृति में गत 22 वर्षों से प्रतिवर्ष हैदराबाद के जैन समाज द्वारा दक्षिण भारत में मौलिक हिंदी साहित्य सृजन के लिए हिंदीतरभाषी हिंदी लेखकों को दिया जाने वाला 'आचार्य आनंद ऋषि साहित्य पुरस्कार' वर्ष 2012 के लिए पुणे के  56 वर्षीय मराठीभाषी हिंदी साहित्यकार डॉ. सुनील केशव देवधर को प्रदान किया गया. समारोह की अध्यक्षता दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रो. ऋषभ देव शर्मा  ने की तथा विख्यात तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन.गोपि मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन हुए.



इस वार्षिक धार्मिक और साहित्यिक समारोह  का अनूठापन यह है कि पुरस्कार प्रदान करने का समस्त अनुष्ठान जैन संतों और साध्वियों के सान्निध्य में संपन्न होता है तथा साहित्यिक जन के साथ ही बड़ी संख्या में जैन समाज के धर्मप्रेमी स्त्री-पुरुष इस अवसर पर उपस्थित रह कर समान रुचि से संतों के आशीर्वचन और साहित्यकारों के उद्गारों का आनंद उठाते हैं. इस वर्ष के आयोजन में आशीर्वाद देने हेतु पधारे-  श्रद्धेय श्री वीरेंद्र मुनि जी, श्रद्धेय साध्वीश्री रमणीक कँवर जी, श्रद्धेय साध्वीश्री प्रतिभा कँवर जी और उनकी सुशिष्या साध्वीवृंद. संतों-सध्वियों ने अपने ओजस्वी उद्बोधनों में कहा कि साहित्य-संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए दान करना जैन दर्शन के अनुसार अपने ज्ञानावरणीय कर्म के बंधन से मुक्त होने का मार्ग है. उन्होंने संतों और साहित्यकारों की  लोकमंगलकारी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए यह भी कहा कि आत्मज्ञान और सम्यक दर्शन द्वारा जीवन और जगत की समस्याओं का निदान सुझाना भी साहित्य का एक प्रयोजन है.


पुरस्कारग्रहीता  साहित्यकार डॉ. सुनील देवधर ने कहा कि साहित्य समाज की विडंबनाओं का समाधान करता है तथा जब कभी राजनीति लडखडाती है तो साहित्य उसे संभाल लेता है. उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि ऋषि सत्यद्रष्टा तथा कवि स्वप्नद्रष्टा हुआ करते हैं. 

मुख्य अतिथि प्रो. एन. गोपि ने अपने उद्बोधन में कहा कि वाणिज्य और वाणी दो भिन्न व्यापार हैं परंतु वाणिज्यरत समुदाय द्वारा वाणी के आराधकों को सम्मानित करना निश्चय ही वरेण्य है. उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रकार के पुरस्कारों और आयोजनों से दक्षिण भारत में राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार प्रसार में लगे हिंदीतरभाषियों को पर्याप्त प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता है.

अध्यक्षासन से संबोधित करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने देश और समाज में व्यापक परिवर्तन के लिए संतों और साहित्यकारों की सक्रिय भूमिका की बात उठाई और कहा कि इन दोनों पर  मनुष्य, मनुष्यता और नैतिक मूल्यों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है. उन्होंने जैन धर्म के अनेकांत, सत्य, अहिंसा, प्रेम और एकता जैसे मूल्यों की प्रासंगिकता की ओर ध्यान दिलाते हुए आचार्यश्री आनंद ऋषि द्वारा प्रवर्तित बालसंस्कार, आडम्बर उन्मूलन, समाज संगठन, व्यसन मुक्ति और धर्म जागृति के पंचसूत्री कार्यक्रम को आन्दोलन के रूप में विस्तार प्रदान करने की ज़रूरत बताई.

'नवकार मंत्र' के साथ आरंभ समारोह  श्रद्धेय श्री वीरेंद्र मुनि जी महाराज के  मांगलिक के साथ सम्पन्नता को प्राप्त हुआ. बीच में कल्पना सुराणा और सखियों ने गायन तथा सत्याप्रसन्ना ने विस्मयकारी संतुलन के प्रदर्शन से परिपूर्ण कुचिपुड़ी नृत्य द्वारा सभी का मन मोह लिया. स्वागत भाषण आचार्य आनंद ऋषि साहित्य निधि के अध्यक्ष  उगम चंद सुराणा  ने दिया.  निधि के कार्यदर्शी  कवि तेजराज जैन की पुस्तक 'प्यार लुटाता चला गया' का लोकार्पण भी पुरस्कृत लेखक के हाथों संपन्न हुआ. संचालन और धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व सुरश गुगलिया, हर्ष कुमार मुणोत  और सुरेश बोहरा ने निभाया. 




चित्र सौजन्य : संपत देवी मुरारका [बाएँ से द्वितीय]


3 टिप्‍पणियां:

  1. rishabh ji aap ka yah naya blog dekh kar achcha laga .jin programe me ham nahi japate hai unhe yahan dekhege .

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    1. Bahut aanand aaya,vishesh roop se photuon ko dekhkar. galtoma arthaat dhanyavaad.GS

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    2. और जिनमें आप लोग जाते हैं उनकी सचित्र रिपोर्ट भिवाएं ताकि वे मित्र देख सकें जो न जा सके हों.

      धन्यवाद.

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