बुधवार, 1 जनवरी 2014

‘श्रीलाल शुक्ल की कथा भाषा और व्यंग्य’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

हैदराबाद, 31 दिसंबर 2013(मीडिया विज्ञप्ति)

संस्कृत साहित्य में व्यंग्यात्मक लेखन की अत्यंत पुष्ट परंपरा रही है. आधुनिक कथासाहित्य में श्रीलाल शुक्ल ने इस परंपरा को नए सन्दर्भों में पुनर्जीवन प्रदान किया. उन्होनें ‘राग दरबारी’ जैसे उपन्यास के माध्यम से हिंदी कथा साहित्य को एक नयी शैली प्रदान की. भाषा की व्यंजना शक्ति का भरपूर प्रयोग करते हुए श्रीलाल शुक्ल ने आज़ादी के बाद के एक भारतीय गाँव के रूपक के माध्यम से समकालीन, सामजिक, आर्थिक और राजनैतिक विसंगतियों पर चुटीला व्यंग्य किया तथा इन परिस्थितियों से आजिज़ आकर भाग खड़े होने वाले बुद्धिजीवियों के छद्म को भी खोल कर सामने रखा.

ये विचार यहाँ आन्ध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के सभागार में कथाकार श्रीलाल शुक्ल के 89वें जन्मदिवस पर आयोजित ‘श्रीलाल शुक्ल की कथा भाषा और व्यंग्य’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उस्मानिया विश्वविद्यालय और ईफ्लू के पूर्व आचार्य डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये.

निरंतर 7 वर्ष से आयोजित होने वाली संगोष्ठी श्रंखला की नवीनतम कड़ी के रूप में संपन्न इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मेरठ विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. कृष्ण चन्द्र गुप्त ने की. उन्होनें अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि एक व्यंग्कार के रूप में श्रीलाल शुक्ल का स्थान इसलिए अत्यंत विशिष्ट है कि उन्होनें व्यवस्था के भीतर रहते हुए उसकी विकृतियों को पहचान कर अभिव्यक्ति के हथियार की तरह व्यंग्य का सहज प्रयोग किया है.

‘भास्वर भारत’ के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने साहित्य, सत्ता, संस्कृति और मनुष्यता के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए यह प्रतिपादित किया कि श्रीलाल शुक्ल ने अपने उपन्यास साहित्य के माध्यम से नेहरू युग की विफलताओं से आक्रान्त जनमानस की यथार्थ अनुभूतियों को सटीक अभिव्यक्ति प्रदान की है. इसी क्रम में प्रो. शुभदा वांजपे ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल ज़मीन से जुड़े ऐसे कथाकार हैं जिन्होंने ‘राग दरबारी’ जैसा सफल महाकाय उपन्यास पारिवारिक परिवेश और स्त्री पात्रों के बिना रच कर व्यंग्य की मौलिक शैली स्थापित की.

इस अवसर पर आन्ध्र प्रदेश सरकार के शासकीय मुद्रणालय से सम्बद्ध आई.पी.एस. अधिकारी श्रीराम तिवारी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि श्रीलाल शुक्ल का साहित्य समाजोपयोगी होने के कारण कालजयी माना जाएगा.

इसी प्रकार सम्माननीय अतिथि पूर्व जिला कलेक्टर जगदीश प्रताप सिंह, आई.ए.एस. ने अपने संबोधन में इस बात पर बल दिया कि साहित्य को सामाजिक संबंधों और राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा के लिए सदा सनद्ध रहना चाहिए.

आरम्भ में आकाश तिवारी ने शंखनाद एवं सरस्वती वन्दाना की. मंगलदीप प्रज्वलन के बाद अतिथियों का स्वागत सत्कार किया गया.

कार्यक्रम की संयोजक डॉ. सीमा मिश्रा ने संगोष्ठी के मूल विषय का प्रवर्तन करते हुए अपना आलेख प्रस्तुत किया जिसमें यह कहा गया कि श्रीलाल शुक्ल ने अपने साहित्य के केंद्र में ‘साधारण’ की प्रतिष्ठा की तथा इसके लिए किस्सागोई से लेकर व्यंग्य तक का सधा हुआ उपयोग किया.

संचालक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अपने आरंभिक वक्तव्य में कहा कि श्रीलाल शुक्ल का यह मत विचारणीय है कि व्यंग्य सत्य की खोज नहीं, बल्कि झूठ की खोज है तथा व्यंग्य के टेढ़े मेढ़े रास्ते से गुज़र कर व्यंग्यकार उन मूल्यों तक पहुँचते हैं जो उत्कृष्ट साहित्य का अंतिम लक्ष्य रहे हैं.


इस अवसर पर उत्कृष्ट साहित्य सृजन और हिंदी सेवा के लिए कवयित्री एवं लेखिका डॉ. पूर्णिमा शर्मा तथा तेवरी काव्यान्दोलन के प्रवर्तक प्रो. ऋषभ देव शर्मा का सारस्वत सम्मान भी किया गया.

कार्यक्रम में नगरद्वय के विशिष्ट साहित्यकारों, हिंदी प्रेमियों, पत्रकारों, अध्यापकों और शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया. 

संयोजक सीमा मिश्रा के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यक्रम का विधिवत समापन हुआ.

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